न्यूज़ मिरर डेस्क
चंडीगढ़,: ट्राई-वेबिनार सीरीज ‘‘प्रोसेस ऑफ चंडीगढ़: कैरिंग फारवर्ड द लिगेसी ऑफ द कार्बूजि़यर एंड पियरे जीनरे’’ के समापन सत्र के दौरान एक अर्थपूर्ण विचार-विमर्श और कई महत्वपूर्ण विचार साझा किए गए थे। इस वेबिनार का आज का विषय आम लोगों की सहभागिता थी।
इस वेबिनार का आयोजन एक्ट! चंडीगढ़ और साकार फाउंडेशन द्वारा संयुक्त तौर पर किया गया था, जिसे भारत सरकार के आवास एवं शहरी मामले मंत्रालय, भारत और भूटान में आधिकारिक स्विस डिप्लोमैटिक प्रतिनिधि, ली कार्बूजि़यर फाउंडेशन, पेरिस, इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ आर्किटेक्ट्स, फायर एंड सिक्योरिटी एसोसिएशन ऑफ इंडिया और एसोचैम-जीईएम द्वारा समर्थित किया गया।
इस आयोजन का उद्देश्य चंडीगढ़ शहर और आस-पास के क्षेत्रों से जुड़े प्रमुख मुद्दों से संबंधित जानकारी पर एक खुली चर्चा के लिए सभी हितधारकों को अपनी राय रखने के लिए आगे लेकर आना है। पहले ही प्रयास को काफी अच्छी प्रतिक्रिया मिली है।
स्विस स्कॉलर डॉ.टॉम एवर्माटे ने प्रतिभागियों को याद दिलाया कि आज के चंडीगढ़ को अपने प्राकृतिक माहौल के साथ महत्वपूर्ण संबंध बनाए रखने के लिए अतीत के चंडीगढ़ से सीखना चाहिए।
एक अन्य स्विस स्कॉलर, डॉ. लॉरेंट स्टाल्डर ने कहा कि शहर सार्वजनिक वार्ताओं के लिए एक जगह है और हमें वस्तुओं और इमारतों से संबंधों के गहराई पर अपने दृष्टिकोण को बदलना चाहिए क्योंकि हम प्राकृतिक तौर पर अनिवार्य रूप से लगातार परिवर्तन से गुजरते हैं।
भारतीय वक्ताओं के बीच एक आम सहमति थी कि शहर के मुद्दों को हल करने के लिए और हमें एक स्थायी भविष्य की ओर ले जाने के लिए वर्तमान सेटअप अपर्याप्त है जो इसकी मूल सोच के करीब है। सिस्टम के भीतर जवाबदेही और सार्वजनिक भागीदारी के कई तरीकों का सुझाव और चर्चा की गई।
डॉ.मनोज तेवतिया, असिस्टेंट प्रोफेसर, क्रिड ने विषय का परिचय देते हुए बताया कि चंडीगढ़ ने प्रशासनिक और अन्य कई पहलुओं से पंजाब से काफी कुछ लिया है, जो एक सीमित उद्देश्य के साथ काम करता है। चंडीगढ़ को अब अपने स्वयं के सार्वजनिक भागीदारी माध्यमों और पूरे सिस्टम को विकसित करना होगा जैसे कि वार्ड समितियों, एडवाइजरी काउंसिलों, स्वयं सहायता समूहों आदि को एक नियमित सामाजिक लेखा परीक्षा के माध्यम से जवाबदेह ठहराया जानाचाहिए। मेयर के साथ-साथ सलाहकार परिषद की वर्तमान प्रणाली केवल औपचारिकता भर है।
चंडीगढ़ के पूर्व सांसद सत्य पाल जैन ने कहा कि ‘‘महत्वपूर्ण मुद्दों के लिए सही निर्णय वर्तमान सेटअप में उन अधिकारियों द्वारा प्राप्त नहीं किए जा सकते हैं जो कम समय के लिए शहर में आते हैं। दुर्भाग्य से, कोरोना महामारी के दौरान भी सार्वजनिक आदान-प्रदान महत्वपूर्ण निर्णयों में नहीं लिया गया था।’’ उन्होंने यह भी कहा कि अक्सर देखा गया है कि नौकरशाही जनता की भागीदारी का प्रतिरोध करती है।
शहर से चार बार के सांसद पवन बंसल ने अफसोस जताया कि बिना विधायिका के चंडीगढ़ नौकरशाही चलाने वाला एक प्रभावहीन प्रशासनिक सेटअप है। सिविल सेवक लोकतांत्रिक रूप से चुने गए प्रतिनिधियों के लिए कोई विकल्प नहीं हैं। यहां तक कि 1984 से पहले की व्यवस्था ने भी बेहतर काम किया, जहां मुख्य आयुक्त के तहत स्थानीय सलाहकार निकाय के पास अधिक भागीदारी थी और प्रतिक्रियाएं अनिवार्य थीं। चंडीगढ़ का यूटी एक अधिकार प्राप्त निर्वाचित निकाय की अनुपस्थिति में खेदजनक स्थिति में पहुंच चुका है। उन्होंने नगर निगम को फंड्स और कार्यों के हस्तांतरण में हमारे संविधान के प्रावधानों के उचित कार्यान्वयन की अनुपस्थिति सहित शहर के बुनियादी बुनियादी ढांचे के मुद्दों पर गहराई से चर्चा की।
चंडीगढ़ कॉलेज ऑफ आर्किटेक्चर की प्रिंसिपल डॉ. संगीता बग्गा ने कार्यवाही का सार बताया और कहा कि इस तरह के रचनात्मक संवाद को चंडीगढ़ शहर के बेहतर कल के लिए भविष्य में भी जारी रखने की आवश्यकता है।